वैज्ञानिकों ने खोजा बाहरी ग्रह पर पानी ढूंढने का नया तरीका,जान कर होगा ताज्जुब !

आकाशगंगा का आसमान अनंत और रहस्मय है, इसमें पृथ्वी समुद्र में पड़ा एक बूंद के समान है जिसके पास जीवन के लिए आवश्यक हर तत्व मजबूत मौजूद है लेकिन वैज्ञानिक समय-समय पर दूसरे हैबिटेबल ग्रह की तलाश करते रहते हैं इस सदी के तकनीक और ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल कर हमारे वैज्ञानिक भविष्य को एक नया रूप देना चाहते हैं,

रिमोट सेंसिंग तकनीक से लेकर नया स्पेक्ट्रोस्कोपी तक तक वैज्ञानिकों का यह सफर काफी रोमांचक रहा है ,यह अपनी कोशिश को हमेशा जारी रखते हैं इसी के फल स्वरुप हाल ही में रिसचर्स की एक इंटरनेशनल टीम के “वैज्ञानिकों ने खोजा बाहरी ग्रह पर पानी ढूंढने का नया तरीका” जो की किसी भी ग्रह की हैबिटेबिलिटी को जानने में काफी मदद करेगा

हैबिटेबिलिटी :

प्लेनेट की हैबिटेबिलिटी उस प्रमाण को दर्शाती हैकी एक ग्रह या तारा आकाशगंगा में जीवन के लिए उपयुक्त हो सकता है या नहीं। किसी वैज्ञानिक इसमें ग्रहों के वातावरण ,तापमान और लिक्विड रूप में मौजूद पानी को अध्ययन कर के उसे हैबिटेबल या नॉन हैबिटेबल ग्रह घोषित करते हैं।

वैज्ञानिकों ने खोजा बाहरी ग्रह पर पानी ढूंढने का नया तरीका

बाहरी ग्रह पर पानी ढूंढने का नया तरीका :

इंटरनेशनल वैज्ञानिक की टीम का यह मानना है केवल किसी ग्रह में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को देखकर उसकी एटमॉस्फेयर में मौजूद सागर का पता लगा सकते हैं, इंटरनेशनल वैज्ञानिको के टीम में यह पाया की किसी भी ग्रह में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा परोस के ग्रह से कम होना उसमे मौजूद लिक्विड वॉटर होने का संकेत है।

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Amaury Triaud जो की यूनिवर्सिटी आफ बर्मिंघम की प्रोफेसर हैं ,जिन्होंने ने इस स्टडी को लीड किया है उनका मानना है की ग्रह में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का पता लगाना बहुत आसान है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड एक मजबूत अब्जॉर्बर है साथ ही उनका यह भी कहना है की विभिन्न ग्रहों के वायुमंडल में CO2 की मात्रा की तुलना करके, हम महासागरों वाले उन ग्रहों की पहचान करने के लिए इस नए रहने योग्य हस्ताक्षर का उपयोग कर सकते हैं, जो उन्हें जीवन का समर्थन करने में सक्षम होने की अधिक संभावना बनाता है। वही डॉक्टर Juliam De vid जिन्होंने इस स्टडी को को-लीड किया है उनका मानना है कि जैसे पृथ्वी 20% कार्बन डाइऑक्साइड को अपने वातावरण में रखता है तो बाकी समुद्र के द्वारा शोक लिया जाता है इस तरह दूसरे ग्रह पर यह मात्रा ज्यादा हो सकता है उन्होंने यह भी कहा की जीव विज्ञान द्वारा कार्बन खपत के स्पष्ट संकेतों में से एक ऑक्सीजन का उत्सर्जन है। ऑक्सीजन ओजोन में कन्वर्ट आसानी से हो सकती है।

इस प्रक्रिया को तीन स्टेप में करने का स्ट्रेटजी बनाया है। उनका यह कहना है की

“हम एक्सोप्लैनेट पारगमन के लिए तीन-चरणीय रणनीति का प्रस्ताव करते हैं: सबसे अनुकूल प्रणालियों के लिए लगभग 10 पारगमन में समशीतोष्ण स्थलीय ग्रहों के आसपास वातावरण का पता लगाना; लगभग 40 पारगमनों में वायुमंडलीय कार्बन कमी का आकलन; और लगभग 100 पारगमनों में पानी बनाम बायोमास-समर्थित कार्बन कमी के बीच उलझने के लिए O3 प्रचुरता का मापन किया गया। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में कहा, रहने योग्य होने के संकेत के रूप में कार्बन की कमी की अवधारणा अगली पीढ़ी के प्रत्यक्ष-इमेजिंग दूरबीनों के लिए भी लागू है। उन्होंने कहा, टीम द्वारा तैयार किया गया ‘हैबिटेबिलिटी सिग्नेचर’ बायोसिग्नेचर के रूप में भी काम कर सकता है, क्योंकि जीवित जीव भी कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं।”

अगले स्टेप में टीम अट्मॉस्फेयर में मौजूद Co2 के कम्पोजीशन के रेंज का पता लगेगी जिससे उनको उस गृह पर मौजूद सागर का पता चलेगा ,इसकी ,मदद से वैज्ञानिको को उस प्लेनेट के हबिटेबल होने का पता जल्दी लगा सकते है।

हलाकि कई अध्ययनों ने उन ग्रहों के रहने योग्य क्षेत्रों में स्थित ग्रहों की पहचान करने का प्रयास किया है जिनकी वे परिक्रमा करते हैं, शोधकर्ताओं ने कहा कि अब तक यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि क्या उनके पास वास्तव में तरल पानी है या नहीं।

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